मेरे शब्द...


 



जंग अपनों से अपने आप ही हारी है मैंने, 
घर टूटने का दर्द, घर टूटने से पहले महसूस किया है मैंने |
मेरी ये शोहरतें खरीदी नहीं, श्रम से कमाई हैं -
मौत की दस्तकें बड़े नजदीक से देखी हैं मैंने ||


मेरा प्यारा भारत करता है हाहाकार, 
बेटियों पर अब बंद करो अत्याचार |
देवों का देश बन गया नरक -
चारों ओर मचा बस चीत्कार ||


निज राष्ट्र की खातिर बिन मौत मर जाना,
आत्मसम्मान हित हंसते-हंसते सूली चढ़ जाना |
इससे बड़ा कोई कर्म नहीं , कोई धर्म नहीं -
नश्वर देह से मर कर सदियों तक अमर हो जाना ||


माँ से बड़ा कोई भगवान नहीं हो सकता, 
ममता से न पिघले, ऐसा कोई पाषाण नहीं हो सकता ?
मंदिर - मस्जिद में न भटक मनुज -
माँ से ज्यादा कृपा बरसादे ऐसा कोई देव नहीं हो सकता ?


मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गूजर, 
फतेहाबाद, आगरा


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