सॉरी सर ; आपसे हुई मुठभेड़ में आपको हमारे कारण हुई असुविधा के लिए मैं बेहद क्षमा चाहता हूँ...


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लेेेख। भले ही कोई व्यक्ति परिस्थितिवश उत्तेजक हो गया हो, किन्तु उसके द्वारा अधिकारी अथवा किसी भी प्रशासनिक शक्तियों को पीटना, हाथापाई करना, विभागीय कार्यो में खलल पैदा करना नियमो के विपरीत है और दण्डनीय भी यह बात तो तय है।



विभिन्न स्थानों में एक दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप सम्बन्धी शोसल मीडिया पर चल रहे कम्मेंट को देख कर लगता है कि प्रशासनिक तंत्र किसी दुर्दांत हिस्ट्रीशीटर को गिरा दे तो भी यह राजनीति का मुद्दा बन जाता है। कहा जाता है फर्जी एनकाउंटर कर दिया गया, सरकार अपराध रोकने में नाकाम है। यह बात आज मौजूदा समय की नही है बल्कि कोई भी दल सरकार में बैठा हो के लिए लोकतंत्र में पिछले कुछ सालों से शास्वत सत्य बन चुका है। 



अपने एक विपक्ष मात्र की पूरी गलती बताने वाले शोसल मीडिया पर चल रहे कममेंट्स यह सिद्ध करते आये है कि सरकारे अच्छा कार्य करे अथवा बुरा लोगो को तो बस मुद्दा चाहिये भले ही मुद्दा यह बन जाये कि पोलिस ने अपराधी को गाली देकर क्यों पकड़ा यह सम्मान के विपरीत उस व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन है।


यह तो प्रेरणा देने वाली बात हो गयी जैसे काल सेंटर वाले लड़के की तरह पुलिस को मुठभेड़ में अपराधी के साथ उसके संवैधानिक मूल अधिकारों के दृष्टिगत कुछ इस तरह ससम्मान पेश आना चाहिए-   


"सॉरी सर, आपसे हुई मुठभेड़ में आपको हमारे कारण हुई असुविधा के लिए मैं बेहद क्षमा चाहता हूँ, किन्तु हमारी पालिसी के कारण हम आपकी सांसो की सर्विस बन्द करने के लिए बाध्य है जिसे हम एनकाउंटर कहते है। यदि आप चाहे तो भी हम आपको जिंदा पकड़ कर अपने सीनियर को ट्रांसफर नही कर सकते है"



यह तो मात्र उदाहरण है। आशय है कि आज के समय मे किसी तथ्य पर सिवाय लड़ाई झगड़े, कुर्सी तोड़ दंगल के स्वस्थ चर्चा सुने ज़माना बीत गया। अब किसी रास्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय विषय पर पक्ष विपक्ष को मिलकर सकरात्मक नकारात्मक बिंदुओं पर हितकारी व स्वस्थ बहस बिरले ही सुनने को मिलती है। टीवी खोलिए और दंगल शुरू।


...गज़ब है वोटबैंक की नीति! जो न की जाए वह कम है। बस बहाना चाहिए।


                            -निखिलेश मिश्रा


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