कामसूत्र और काजल का अविष्कार...


 


अंग्रेजों ने भारत की धन-दौलत ही नहीं सदियों पुराना ज्ञान भी लूटा था। इन ग्रंथों में हमारी सामरिक शक्तियों, आध्यात्म और समाज से जुड़े तमाम राज और अविष्कार दर्ज थे। ऐसा ही एक ग्रंथ था कामसूत्र। जिसमें छिपे एक राज ने उन्हें दुनिया में सबसे ज्यादा ताकतवर बना दिया था। आइए जानते हैं


क्या था यह राज-


कामसूत्र का नाम सुनते ही लोग नाक-मुंह सिकोड़ने लगते हैं, लेकिन वह भूल जाते हैं कि महर्षि वात्स्यायन का कामसूत्र विश्व की पहली यौन संहिता है। जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है, लेकिन आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि वात्सायन के इस ग्रंथ ने भारतीय इतिहास को संजोने में अहम भूमिका निभाई। इस प्राचीन ग्रंथ से सिर्फ यौन आसन ही नहीं निकले, बल्कि कामसूत्र की कजरारी से काजल जैसे सौंदर्य प्रसाधनों ने भी जन्म नहीं लिया। 


रचना के बाद से ही वात्सायन के कामसूत्र का वर्चस्व पूरी दुनिया में छाया हुआ है। आपको जानकर हैरत होगी कि माधकालीन दौर में इस प्राचीन ग्रंथ को बचाने के लिए उसे छिपा दिया गया था, लेकिन करीब 200 साल पहले यह किताब व्यापार करने भारत आए अंग्रेजों के हाथ लग गई। अंग्रेज इसे इग्लेंड ले गए जहां यह प्रसिद्ध भाषाविद सर रिचर्ड एफ बर्टन के हाथों तक पहुंची। बर्टन ने जब वात्सायन के कामसूत्र का अंग्रेजी में अनुवाद किया तो पूरी दुनिया में तहलका मच गया। आलम यह था कि उस समय इस किताब की एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी। 


छिपा गए इतिहास बदलने वाली खोज 



कामसूत्र का अनुवाद करने के दौरान बर्टन के हाथ दुनिया बदलने वाली एक खोज भी लगी, लेकिन वह इसे छिपा गए। बाद में उन्होंने इस खोज को नाम दिया 'मार्कर'... एक ऐसी स्याही जो कभी मिटती ना हो। यही अमिट स्याही बाद में अंग्रेजों की अचूक ताकत बन गई। ऐसी ताकत जिसके जरिए वह अपने सारे दस्तावेज इग्लेंड में लिखते और दुनिया भर के गुलाम देशों तक भेजते। 


अब खुला इतिहास बदलने वाला राज 



हाल ही में पुणे के फग्यू्र्रसन कॉलेज में देश भर के 450 वैज्ञानिक और शोधार्थी जुटे। मौका था भारतीय विज्ञान सम्मेलन का। विज्ञान भारती की ओर से हुए इस आयोजन में कोटा के डॉ. बाबू लाल भाट ने इतिहास बदलने वाला शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने वंशावली लेखकों के हजारों साल पुराने दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया कि अमिट स्याही का जन्म वात्सायन के कामसूत्र से करीब 3000 साल पहले हुआ था। डॉ. बाबूलाल भाट वंशावली लेखकों पर शोध करने वाले देश के पहले शोधार्थी हैं। उन्होंने इतिहासकार प्रो. जगत नारायण के निर्देशन में कोटा विश्वविद्यालय से पीएचडी की। सात साल तक देश भर में घूम कर वंशावली लेखकों, लिखने के तरीकों और संसाधनों की जानकारी जुटाने में जुटे रहे। 


ऐसे बनती थी अमिट स्याही 

डॉ. भाट के मुताबिक वात्सायन के कामसूत्र में कजरारी से काजल बनाने की तमाम विधियां बताई गई थीं। जिनमें सुधार कर वंशावली लेखकों ने अमिट स्याही बनाने के तीन तरीके खोजे। वंशावली लेखकों के सदियों पुराने दस्तावेजों में तीन प्रमुख तरीके मिलते हैं। पहला  सबसे आसान तरीका था कि छह टका काजल, बारह टका बीयाबोल, छत्तीस टका खेर का गोंद, आधा टका अफीम, अलता पोथी तीन टका, कच्ची फिटकरी आधी टका को लेकर नीम के ठंडे पानी से तांबे के बर्तन में सात दिन तक घोटने से पक्की काली स्याही बन जाएगी। 


गोमूत्र से भी बनती थी स्याही 

वंशावली लेखकों के प्राचीन ग्रंथों में गोमूत्र से भी स्याही बनाने का तरीका दर्ज है। जिसके लिए नीम का गोंद, उसकी दुगनी मात्रा में बीयाबोल और उससे दुगना तिल के तेल का बना हुआ काजल लेकर सभी को गोमूत्र में मिलाकर आग पर चढ़ा दें। पानी सूखने पर लाक्षा रस मिलाकर गोमूत्र से धोए हुए काले भांगरे के सर के साथ इसे घोटें। बेहद टिकाऊ काली अमिट स्याही बनेगी। वहीं तीसरा तरीका सूखी अमिट स्याही बनाने का था। जिसमें तिल के तेल से पारे गए काजल और तांबे-नीम के घोटे का इस्तेमाल होता था। 


मैंने साभार कई श्रोतों का भी यथास्थान उपयोग किया है।


-निखिलेश मिश्रा


Nikhilesh Mishra II


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