जुआ दीपावली पर  खेलना क्यों माना जाता है शुभ...


नवीन यादव रिपोर्ट
 
झांसी : पारंपरिक रूप से दीपावली पर जुआ खेलना शुभ शगुन माना जाता है। यद्यपि कानून इसकी इजाजत नहीं देता। लेकिन यह परम्परा सदियों से निभती चली आ रही है और प्रशासन भी इसे लेकर ज्यादा सख्त रुख नहीं रखता है। आइए जानते हैं कि इस त्योहार पर लोग जुआ शगुन के रूप में क्यों खेलते हैं?


मां पार्वती ने शिव संग रातभर खेला चौसर



हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार दीवाली के दिन जुआ खेलना शुभ होता है। माना जाता है कि दीवाली की रात माता पार्वती ने भगवान शिव के साथ पूरी रात चौसर खेला था। माता पार्वती ने कहा था कि दीवाली की रात ताश खेलने वालों के घर असीम सुख समृद्धि आएगी। पहले इस खेल को चोरी-छुपे खेला जाता था। लेकिन आज-कल यह हाई सोसायटी फैमिली वालों के लिए स्टेटस सिंबल बन गया है। इसके चलते घर पर ही इसका आयोजन किया जाने लगा है। परिवार के सभी सदस्य माता लक्ष्मी की पूजा के बाद खाना खाकर एक जगह बैठकर जुआ खेलते हैं। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि ताश के खेल के बहाने परिवार के सभी सदस्य साथ बैठकर अपने सुख-दुख बांट लेते हैं।



भारत में आम है दीवाली के दिन जुआ



एक सर्वेक्षण के अनुसार देश के लगभग 45 प्रतिशत लोग दीपावली की रात जुआ खेलते हैं। इनमें 35 प्रतिशत लोग ही शगुन के तौर पर जुआ खेलते हैं लेकिन 10 प्रतिशत लोग ऐसे होते हैं, जो पक्के जुआरी होते हैं और किसी भी मौके पर जुआ खेलने से परहेज नहीं करते। सर्वे से पता चलता है कि अधिकतर जुआरी सबसे पहले दीपावली की रात जुआ खेलने की शुरुआत करते हैं और बाद में उन्हें इसकी लत लग जाती है। ऐसा देखा जाता है कि लोगों ने दीपावली पर शौक या शगुन के रूप में जुआ खेलने की शुरुआत की और उसमें हारने पर हारी हुई रकम हासिल करने के लिए आगे भी जुआ खेला और उन्हें इसकी लत लग गई। इसी तरह यदि जुआ खेलने वाला दीपावली को जीतता है और जीतने की लालसा में अगले दिन भी खेलता है तो वह जुए की लत का शिकार हो जाता है।


आर्यों के मनोरंजन का साधन था जुआ



ऋग्वेदकालीन ग्रंथों में बताया गया है कि आर्य जुए को आमोद-प्रमोद के साधन के रूप में इस्तेमाल करते थे। उस काल में पुरुषों के लिए जुआ खेलना समय बिताने का साधन था। जुए से जुड़े विभिन्न खेलों की अनेक ग्रंथों में चर्चा की गई है। अथर्ववेद के अनुसार जुआ मुख्यतः पासों से खेला जाता था। अथर्ववेद वरुण देव का वर्णन करते हुए कहता है कि वह विश्व को वैसे ही धारण करते हैं जैसे कोई जुआरी पासों से खेलता हो। महाभारत में उल्लेख है कि दुर्योधन ने पांडवों का राज्य हड़पने के लिए युधिष्ठिर को जुए की साजिश में फंसा दिया था। युधिष्ठिर ने जुए में सब कुछ लुटाने के बाद अपनी पत्नी द्रौपदी को भी दाव पर लगा दिया और उसे हार गए। यह जुआ भीषण संग्राम का कारण बना था। सार्वजनिक मनोरंजन के लिए भी जुआ खेलने का प्रचलन रहा है। मौर्यकालीन समाज में इस खेल का जिक्र किया गया है। विदेशी राजदूत मेगस्थनीज ने मौर्यकालीन वैभव का जिक्र करते हुए लिखा है कि भारतीय भड़कीले वस्त्र और आभूषणों के प्रेमी हैं तथा वैभव और विलासिता को दिखाने के लिए जुआ खेलते हैं।


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