हमारे ग्रंथो मे भी लिखा है “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”

सपना श्रीवास्तव (स्वतन्त्र लेखक)


भारतीय संविधान दुनियां के उन मुख्य संविधानों में से है जो महिला पुरुष समानता की बात करता है| भारतीय संविधान में सामाजिक, राजनितिक और आर्थिक रूप से महिलाओं को पुरुषों के सामान अधिकार प्राप्त है| लेकिन विडंबना इस बात की है, कि आज भी महिलाओं को अपने अधिकारों को प्राप्त करने और अपने सम्मान के लिए लड़ना पड रहा है|
हमारे ग्रंथो मे भी लिखा है “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” इसका अर्थ है जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवता भी निवास करते है। हमारे देश में नारियों को बहुत सी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है 



 विडम्बना तो यह है कि इतने सारे कानूनी प्रावधानों के होने के बावजूद देश में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में कमी होने की बजाय वृध्दि हो रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो( NCRB) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में प्रतिदिन 100 महिलाओं का बलात्कार हुआ और  यूनिसेफ की रिपोर्ट 'हिडेन इन प्लेन साइट' के मुताबिक भारत में 15 साल से 19 साल की उम्र वाली 34 प्रतिशत विवाहित महिलाऐं ऐसी हैं जिन्होंने अपने पति/ साथी के हाथों यौन हिंसा झेली है। इंटरनेशनल सेंटर- रिसर्च ऑन वीमेन के अनुसार भारत में 10 मे से 6 पुरुषो ने कभी न कभी पत्नी अथवा प्रेमिका के साथ हिंसक व्यवहार किया है।  NCRB के अनुसार पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के विरुध्द हुए अत्याचारों में दो- गुने से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। इस संबंध में देश में हर घंटे करीब 26 आपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं। यह स्थिति बेहद ही भयावह है। इसके अतिरिक्त कई अन्य चिंतायें भी जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सरोकार, घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में भूमिका की कमी, दोहरा सामाजिक रवैया, प्रशिक्षण का अभाव, पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता, गरीबी एवं धार्मिक प्रतिबंध शामिल हैं। यूएनडीपी (मानव विकास रिपोर्ट) 1997 के अनुसार भारत में 88% महिलायें रक्ताल्पता का शिकार हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण पाने के बहुत कम उपाय प्रयोग किये जाते हैं, जिससे बार- बार गर्भधारण और शारीरिक अक्षमता के चलते कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याऐं आये दिन देखनें में आती रहतीं हैं।



जब कोई स्त्री एक हाथ के सहारे से अपनी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही होती है वहीं दूसरे हाथ से वह अपने ही परिवारीजन द्वारा की जा रही हिंसा का प्रतिरोध कर रही होती है। पुराने समय के सन्दर्भ में आज की महिलाओं ने बहुत उपलब्धियां अर्जित की हैं, परंतु सत्य यह भी है कि ये रास्ता अभी बहुत लंबा एवं संघर्ष से भरा हुआ है।



महिलाएं अपने घर को दूर छोड़कर बाहर तो आती हैं, परंतु यहाँ बाहर एक अत्यधिक क्रूर, निष्ठुर तथा शोषणकारी समाज उसकी प्रतीक्षा कर रहा होता है, एवं यहाँ ऐसे समाज में उसे अपनी काबिलियत साबित करनी होती है जो उसे भोग की वस्तु तथा वंश को आगे बढ़ने वाली वस्तु से अधिक कुछ नही मानता।



भारतीय महिलाओं को अपने विरोध में उठने वाले सभी स्वरों को निरुत्तर करके, अपना रास्ता स्वयं ही बनाना है, तथा यह पुरुष की जिम्मेदारी है कि वह महिलाओं को देश के विकास में बराबर का साझीदार एवं भागीदार मानकर उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।


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