खाकी में लागा चलान का भंग ट्रैफ़िक पुलिस पर भी चढ़ा रंग
- पुलिस महकमा खुद न तो हेलमेट लगा कर चलता है और न ही तीन सवारी बैठाने से बाज़ आता है ऐसे में इनको न तो कोई रोकता है और न ही कोई टोकता है।
मनिन्दर सिंह मंचला
जब से प्रशासन को ऊपर वालों ने यह आदेश दिया है कि हर जगह हर चौराहे पर बिना हेलमेट पहने लोगों के व तीन सवारी होने पर चालान काटा जाए तब से खाकी वर्दी वालों पर इसका कुछ ऐसा रंग चढ़ा है कि ही चौराहे को शाम होते होते कुछ इस तरह बना दिया जाता है जैसे कानपुर में कोई बहुत बड़ी घटना हुई हो या होने की आशंका हो। उस पर भी कोई किसी इमरजंसी काम के लिए निकल रहा हो तो उसको इतना परेशान कर दिया जाता है कि वह अपना सारा काम धाम ही भूल जाता है। मेरा कहने का तात्पर्य यह बिलकुल नहीं है कि सख्ती करना बुरी बात है परंतु यह ज़रूरत से ज्यादा सख्ती आखिर क्यों। क्या कानपुर क्रिमिनल पुर हो चुका है जो ज़रूरत से भी ज्यादा सख्ती दिखाई जा रही है या कानपुर की जनता को डराने का यह कोई नया फंडा अपनाया जा रहा है।
मैं पूछता हूँ जब ट्रैफ़िक पुलिस है हमारे यहां चालान करने के लिए तो सिविल पुलिस को चलान के कामों पर क्यों लगाया जा रहा है। क्या प्रशासन का अपने ही महकमे ट्रैफ़िक पुलिस से विश्वास उठ चुका है या इसके पीछे कोई राज़ छिपा है। जो प्रशासन उजागर नहीं कर पा रहा है। और आम जनता को जो प्रशासन के इस रवैये से जो परेशानी उठानी पड़ रही है इसकी भरपाई भी क्या पुलिस करेगी। या वही डाल के तीन पात वाला खेल जनता के साथ खेला जाएगा। अब तो पत्रकारों की भी प्रशासन ने सुननी बंद कर दी है। कहते हैं पत्रकार हो तो क्या चालान तो हो कर रहेगा। दूसरी ओर पुलिस महकमा खुद न तो हेलमेट लगा कर चलता है और न ही तीन सवारी बैठाने से बाज़ आता है ऐसे में इनको न तो कोई रोकता है और न ही कोई टोकता है। रज्जन मियां अभी दो दिन पहले ही मिले, एक अखबार के संपादक थे बोले मैं तो बड़ा दुःखी हो चुका हूँ मैंने पूछा क्यों बोले कल मैं मोती झील के सामने से निकला ही था तभी सामने पुलिस वाले दिख गए मैंने सोचा चलो थोड़ी दुआ सलाम हो जाएगी।
मैंने कहा फिर... बोले, अब क्या बोले जनाब रुकवा लिया और एक लेडी दारोगा बोली अब तो चालान हो कर रहेगा। मैंने कहा, मैडम जी मैं तो आप ही के पास आ रहा था। तो वो बोलीं, आये हैं तो चालान कटा कर जाइए। पत्रकार हैं तो क्या हुआ कटेगा तो है ही। इतने में दो पुलिस वालों के साथ एक व्यक्ति और बाइक से उतरा। मैं बोला फिर उसने कहा तो मैने मैडम जी से बोला कि देखिये आप के पुलिस वाले ही नियम का पालन नहीं कर पा रहे हैं इनका क्या होगा तो उधर से जवाब आया यह स्टाफ का मामला है। अब यह हमे कोई बताए कि पुलिस वालों के लिए अलग रूल और आम जनता के लिए अलग रूल। यह कैसा न्याय है। अभी सुना है कि कानपुर के कुछ चौराहों पर वन वे कर दिया गया है और चालान किये जा रहे हैं। उसी वन वे से कोई पुलिस वाला शान से चला जा रहा है, मगर कोई उसको रोकने वाला नहीं था। खैर मैंने बात को थोड़ा घुमा दिया था फिर उसी मुद्दे पर आता हूँ। ट्रैफ़िक पुलिस के होते हुए सिविल पुलिस इतनी सख्त क्यों। कानपुर को इस तरह से छावनी में बदलने से लोगों में दहशत और परेशानी का माहौल बन चुका है।